वन विभाग में भ्रष्टाचार पर उठे सवाल, तंत्र पर आरोपियों को बचाने का आरोप

वन विभाग में भ्रष्टाचार पर उठे सवाल, तंत्र पर आरोपियों को बचाने का आरोप

 उत्तराखंड वन विभाग के जंगलराज में भ्रष्टाचार का जानवर खूब फल फूल रहा है। भ्रष्ट अधिकारियों के कारनामे तो चौंकाने वाले हैं ही, पूरा सिस्टम भी उन्हें बचाने में लगा रहता है। नरेंद्रनगर वन प्रभाग में हुए घपले घोटालों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर

 उत्तराखंड वन विभाग के जंगलराज में भ्रष्टाचार का जानवर खूब फल फूल रहा है। भ्रष्ट अधिकारियों के कारनामे तो चौंकाने वाले हैं ही, पूरा सिस्टम भी उन्हें बचाने में लगा रहता है। नरेंद्रनगर वन प्रभाग में हुए घपले घोटालों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए पूर्ववर्ती सरकारों में मुख्यमंत्री तक पूरा जोर लगा चुके हैं। वन विभाग के एक अधिकारी के एक राजनेता का दामाद होने के कारण भी सिस्टम लाचार नजर आता रहा। हालांकि, अब गड़बड़ियों को लेकर उक्त अधिकारी से सवाल पूछे जा रहे हैं और शासन ने भी जवाब तलब कर लिया है। हालांकि, अब भी बड़ा सवाल यही है कि पूर्व में वर्ष 2015 से लेकर 2019 तक हुई जांच और सामने आए भ्रष्टाचार के प्रमाणों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो सकी। साथ ही एक अधिकारी को बचाने के लिए दूसरों पर ठीकरा फोड़ा गया और कार्रवाई भी की गई। क्या कोई अधिकारी नियमों से बढ़कर और जांच रिपोर्ट से ऊपर भी हो सकता है। हालांकि, वर्तमान सरकार में मामले में निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद नजर आ रही है।

इस मामले में भ्रष्टाचार का सिलसिला कई साल पहले शुरू हो चुका था। नरेंद्रनगर वन प्रभाग में करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे, जांच हुई और पुष्टि भी, लेकिन आरोपी प्रभागीय वनाधिकारी (DFO) को बचाने के लिए शासन-प्रशासन के उच्चतम स्तर तक नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। जबकि, इस पूरे मामले में आधा दर्जन से अधिक अधिकारियों ने जांच कर डीएफओ को दोषी ठहराया था, वहीं केवल एक रेंजर को जेल भेजकर पूरे घोटाले का ठीकरा उनके सिर फोड़ दिया गया।

तब पूर्व मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से बदल दी गई थी रिपोर्ट

वर्षों पहले के इस मामले में जांच के दौरान पहले प्रमुख सचिव ने डीएफओ के खिलाफ स्पष्ट आरोप तय कर विभागीय कार्रवाई और स्थानांतरण की सिफारिश की थी। लेकिन बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रमुख सचिव को ही बदल दिया गया। नए प्रमुख सचिव ने अंतिम रिपोर्ट में डीएफओ को “अनुभवहीन और शिथिल” कहकर क्लीन चिट दे दी। इस पर तब के वन मंत्री की टिप्पणी “मुख्यमंत्री द्वारा दूरभाष पर अवलोकन की अपेक्षा की गई है” पूरी जांच प्रक्रिया को संदिग्ध बनाती है।

ये रही घोटालों की फेहरिस्त: कागज़ों में पुलिया, धरातल पर शून्य

बग्वासेरा में 2.60 लाख रुपये की पुलिया कागज़ों में बन गई, लेकिन स्थल पर कोई निर्माण नहीं।

– गजा-शिवपुरी सड़क पर 6 लाख में बनने वाले 73 पुश्ते सिर्फ फाइलों में मौजूद रहे।

– ढालवाला में 66.40 लाख की हाथी सुरक्षा दीवार बिना टेंडर, बिना टीएसी स्वीकृति के बना दी गई।

– मधुमक्खी बक्सों की आपूर्ति बिना स्टॉक के दर्शाई गई, एक लाख का गबन।

– वन आरक्षी भर्ती घोटाला, अभ्यर्थी की लंबाई बढ़ाकर फर्जी भर्ती की गई, 5 लाख की रिश्वत का आरोप।

जांच पर जांच, लेकिन नहीं आई आंच

जिलाधिकारी टिहरी, मुख्य विकास अधिकारी, उप वन संरक्षक, प्रमुख सचिव, अपर प्रमुख वन संरक्षक इन सभी ने अपनी जांचों में उक्त डीएफओ को दोषी ठहराया। लेकिन, सरकार ने अंतिम आदेश में डीएफओ को सिर्फ “भविष्य में सावधानी बरतने” की सलाह देकर छोड़ दिया।

नकद नारायण और मस्टरोल की सड़ी व्यवस्था ने खोली भ्रष्टाचार की राह

एक आरटीआई कार्यकर्ता जेके ने आरोप लगाया कि वन विभाग आज भी नकद भुगतान प्रणाली और मस्टरोल जैसी प्रक्रियाओं में उलझा है। लाखों-करोड़ों की योजनाएं बिना किसी पारदर्शी शिलान्यास या लोकार्पण के शुरू हो जाती हैं, और विभागीय अधिकारी खुद ठेकेदार बनकर सरकारी धन की बंदरबांट कर लेते हैं।

एफआईआर सिर्फ रेंजर पर, अधिकारी बेदाग़

जहां डीएफओ खुद अपने अधीनस्थ रेंजर पर एफआईआर करवाते रहे, वहीं खुद को साफ-सुथरा दिखाने की हर कोशिश करते रहे। लेकिन उन्हीं के ऊपर विभागीय अधिकारियों की रिपोर्ट में भ्रष्टाचार की पुष्टि हुई और कई गंभीर आरोप सिद्ध हुए।

जांच तो हुई पर कार्रवाई को लेकर लीपापोती

सबसे चिंता की बात यह रही कि शासन स्तर पर भी इस भ्रष्टाचार को दबाने की खुली कोशिशें की गईं। एक तरफ अपर सचिवों की टिप्पणियों में कड़ी कार्रवाई की बातें थीं, वहीं अंतिम आदेश में डीएफओ को निर्दोष बताकर मामले को रफा-दफा कर दिया गया।

जांच सिर्फ दिखावा, कार्रवाई एकपक्षीय

नरेंद्रनगर का यह मामला उत्तराखंड में भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। आधा दर्जन से अधिक जांचों में दोष सिद्ध होने के बावजूद दोषियों पर ठोस कार्रवाई न होना प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। जब प्रदेश के मुखिया ही दोषियों को बचाते रहे हों तो सिस्टम को क्या दोष दिया जाए। वहीं दोषी अधिकारी किसी मंत्री के दामाद बताए जाते हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार में जीरो टॉलरेंस के उद्देश्य से काम किया जा रहा है और यही वजह है कि वर्तमान में उक्त अधिकारी से शासन ने जवाब तलब किया है और जल्द कार्रवाई की उम्मीद जगी है।

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