उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की रोक, सरकार की मनमानी पर जताई नाराज़गी

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की रोक, सरकार की मनमानी पर जताई नाराज़गी

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया को हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह रोक राज्य सरकार द्वारा पंचायत चुनावों में आरक्षण की रोटेशन प्रणाली को लेकर बरती गई अनियमितताओं के चलते लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया को हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। नैनीताल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह रोक राज्य सरकार द्वारा पंचायत चुनावों में आरक्षण की रोटेशन प्रणाली को लेकर बरती गई अनियमितताओं के चलते लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब मामला न्यायालय में विचाराधीन था, तो सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर चुनावी प्रक्रिया शुरू किया जाना न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।

सरकार की हठधर्मिता पर अदालत की नाराज़गी
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को पहले जवाब दाखिल करना था, लेकिन उसने नामांकन प्रक्रिया तक आरंभ कर दी। कोर्ट ने इसे अनुचित करार देते हुए चुनाव प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही राज्य सरकार से विस्तृत जवाब भी मांगा गया है।

12 जिलों में रुकी चुनाव प्रक्रिया
इस आदेश के बाद उत्तराखंड के 13 में से 12 जिलों (हरिद्वार को छोड़कर) में चल रही पंचायत चुनाव प्रक्रिया ठप हो गई है। सोमवार से नामांकन पत्रों की बिक्री भी शुरू हो गई थी, जो अब रोक दी गई है।

याचिकाकर्ताओं का आरोप – आरक्षण रोटेशन में भारी गड़बड़ी
बागेश्वर निवासी गणेश दत्त कांडपाल व अन्य याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि सरकार ने 9 जून 2025 को नई पंचायत चुनाव नियमावली लागू की और 11 जून को एक परिपत्र जारी कर पहले से लागू आरक्षण रोटेशन प्रणाली को शून्य घोषित कर दिया। वहीं, कोर्ट के समक्ष रुद्रप्रयाग के निवासी विरेंद्र सिंह बुटोला की याचिका पर अधिवक्ता अनिल जोशी के अनुसार 09 जून को जो रूल्स बनाए हैं, उन्हें नोटिफाइड नहीं किया गया है।

याचिका में कहा गया कि यह निर्णय पूर्व में हाईकोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के विरुद्ध है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इससे कई सीटें लगातार आरक्षित वर्ग के लिए आरक्षित रह गई हैं, जिससे सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिल रहा।

सरकार की ओर से अस्पष्ट स्थिति
राज्य सरकार की ओर से अदालत को सूचित किया गया कि इस मुद्दे से संबंधित याचिकाएं हाईकोर्ट की एकलपीठ में भी लंबित हैं। हालांकि खंडपीठ ने इस दलील को ठुकराते हुए स्पष्ट किया कि जब तक आरक्षण रोटेशन की प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत नहीं होती, तब तक चुनाव प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

क्या होगा आगे?
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब राज्य निर्वाचन आयोग को भी इंतजार करना होगा कि सरकार क्या जवाब दाखिल करती है। इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य की राजनीतिक हलचल को भी तेज कर दिया है। संभावित उम्मीदवारों में असमंजस की स्थिति है और ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी तैयारियों पर विराम लग गया है।

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